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17 Feb 2024 · 1 min read

कान्हा घनाक्षरी

कान्हा घनाक्षरी
नया हर दिन रहे, नई हर प्यास रहे
भोर के क्षितिज का, अभिराम कीजिये
मन में तरंग रहे, तन में उमंग रहे
घेरे न उदासी फिर, राम राम कीजिए
दूर दूर ये दिशायें, कहती कुछ खास जी
चलते रहो निशिदिन, न आराम कीजिए
राम सा चरित्र रख, कृष्ण सा पवित्र दिख
आये हो जगत में तो, नेक काम कीजिए।।

सूर्यकांत द्विवेदी

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