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16 Feb 2024 · 1 min read

आओ उर के द्वार

असह्य हुआ है अब
वेदना का ज्वार
चाहता है तोड़ बहना
सशक्त बांध दीवार।
ढूॅंढता है टूटा मन
एक ऐसा संबल
सिर रख कर रो ले
जहाॅं पर पल दो पल।
मगर तेरे सिवा
है कौन मेरा जग में ?
सब छिड़कते हैं नमक
यहाॅं दुखती रग पे।
आखिर आते क्यों नहीं
तुम बनकर साकार
क्या अभी कुछ कम है
मेरी वेदना का भार ?
निराकार मैंने तुम्हें
कभी माना नहीं
दूर तुमको मैंने
कभी जाना नहीं।
आज तुम भी मुझसे
क्यों मुॅंह चुराने लगे
मन में अकेलेपन का
अहसास जगाने लगे।
अगर है सच्ची श्रद्धा
सच्चा है मेरा प्यार
तो मुझे दिलासा देने
आओ उर के द्वार।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)

Language: Hindi
1 Like · 340 Views
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