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16 Feb 2024 · 1 min read

अपनो का गम

तोड़ जाता है ये गहरे तक इंसान को,
बिखरा जाता है जीवन के अरमान को।
वही समझता है सहता है जो इस पीड़ा को,
जिसने अपनो का गम बेवक्त झेला हो।

कोइ काम करो जब भी अकेले में रहकर।
याद आ जाते हैं साथ बिताए थे जो पल।
बोझ सा लगता है ये जीवन, मन फिर रोता है।
खलती है कमी अपनो की जीना मुश्किल होता है।

हर दिन बस इस मन को फिर तो समझाना है,
चला गया है जो उसे कब लौट के आना है।
यादें रह जाती हैं बिताए गुजरे लम्हों की।
बातें याद आती हैं बस बिछड़े अपनो की ।

काश ऐसा होता उस पल को रोक पाते,
अपनो के जाते से कुछ पल तो ठहर जाते।
सांसों का रिश्ता जब तन से टूट जाता है।
पीछे अपने एक दुनियां रोते छोड़ जाता है।

अपनो का गम तो बस अपनो को होता है।
दर्द भरे दामन को हर दिन आंसू से भिगोता है।
भुलाते नहीं भूलती हैं वो चुभन ये दे जाता है।
अपना जब कोइ दुनिया को छोड़ चला जाता है।
अपनो का गम तो हरदम रुला के जाता है।

स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेशú

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