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16 Feb 2024 · 1 min read

"प्रीत-बावरी"

इश्क़े-हिकायत, हमने, बहाई पानी में,
लिख लिख कर तहरीर, डुबाई पानी में l

आख़िर क्यूँ है चाँद, पशेमाँ आज हुआ,
पड़ता किस का अक्स, दिखाई पानी मेँ।

हैराँ सा, दरिया भी, सबसे पूछे है,
किस ज़ालिम ने, आग लगाई पानी मे।

खो जाता हूँ याद मेँ उसकी, साहिल पर,
पड़ती है इक सदा, सुनाई पानी मेँ।

नादाँ थे, जो यक़ीं, नाख़ुदा पर आया,
“प्रीत-बावरी”, रीत निभाई, पानी मेँ।

खा-खा कर हिचकोले, कश्ती चूर हुई,
मौजों सँग, डूबी-उतराई, पानी मेँ।

मझधारे, मल्लाह मुझे, क्यूँ छोड़ गया,
उल्फ़त की नापी, गहराई पानी मेँ।

भूल नहीं पाता क्यूँकर, चेहरा उसका,
अभी-अभी हो ज्यूँ, मुस्काई पानी मेँ।

सूख चला दरिया भी था, जब अश्क़ों का,
मजबूरन थी कलम, भिगाई पानी मेँ।

लग ना जाए ठोकर भी “आशा” उसको,
सो अपनी है, क़ब्र बनाई, पानी मेँ..!

इश्क़े-हिकायत # प्रेम-वृत्तांत, the tale of love.
तहरीर # लिखित दस्तावेज, written document.
पशेमाँ # शर्मसार, ashamed.
सदा # आवाज़, sound, voice etc.
नाख़ुदा # नाविक, नाव खेने वाला, sailor.

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