"शरीफ कम, समझदार ज्यादा हो गए हैं लोग ll
लोग कहते हैं कहने दो लोगो का क्या ?
रात बसर की मैंने जिस जिस शहर में,
मैं हूँ, मुर्दा या जिंदा....
जहाँ सूर्य की किरण हो वहीं प्रकाश होता है,
लफ्जों को बहरहाल रखा...!!
कभी हसरतें थी कि, तेरे शहर में मेरा मकां होगा
ये ईश्वर की दया-दृष्टि ही तो है
खोले हैं जज्बात के, जब भी कभी कपाट
ख़ुशियाँ हो जीवन में, गुलाब होने का हर्ष रहे