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14 Feb 2024 · 1 min read

उनकी जब ये ज़ेह्न बुराई कर बैठा

ग़ज़ल
उनकी जब ये ज़ेह्न बुराई कर बैठा
ये दिल मेरा हाथापाई कर बैठा

अच्छा बनना था अच्छाई कर बैठा
मैं रिश्तों में ख़ुद ही खाई कर बैठा

रोज़ मुझे वो बे-इज़्ज़त करता है अब
मैं उसकी इज़्ज़त-अफ़जाई कर बैठा

मुझ में लोग उतरने से कतराते हैं
क्यों ख़ुद में इतनी गहराई कर बैठा

आस्तीन में ख़ंजर रखने की लत में
मैं अपनी ही ज़ख़्मी कलाई कर बैठा

इक ही दीया रौशन था, मैं उसे बुझा कर
और ज़ियादा ही तन्हाई कर बैठा

मेरी दुनिया को करके बे-रंग ‘अनीस’
वो हरजाई दस्त-ए-हिनाई¹ कर बैठा

– – अनीस शाह ‘अनीस ‘

1. मेंहदी से सजे हाथ

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