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12 Feb 2024 · 1 min read

तुम कविता हो

तुम कविता हो

लफ्ज़ में लिपटी कविता
बहे मध्यम बयार सी
ऊँचाईयों को छूकर गुज़रती
कभी गुलाबो सी महकती
पन्नों पर हाले दिल बया करती
स्याही को माध्यम बनाकर
बातों से लुभाया करती
हे कविता तुझसे मुहब्बत है
दिलों दिमाग पर तुम ही तुम
मेरे पहलू में बैठ कर मुस्कुराती
मेरे जीने का सबब बन जाती हो
हर दिन नये जौशोखरोश से
एक नये दिन का आगाज़
लिए हां तुम कविता हो

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