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12 Feb 2024 · 2 min read

पृथ्वी

पृथ्वी कहती है युग मानव तुम ही मेरा अस्तित्व अभिमान।।
प्रकृति मूक मेरा श्रृंगार चाहत है तेरी बानी रहूँ जननी तू मत कर मेरा परिहास।।

मौसम ऋतुएं मेरा भाग्य सौगात बारिस से बुझती मेरी प्यास अन्न से तुझे धन्य कर देती अन्न मेरा आशीर्वाद।।

शरद शर्द मेरा स्वास्थ शिशिर हेमंत मेरी गर्मी श्वांस वसन्त यौवन का मधुमास।।

मां की कोख में नौ माह ही रहता मेरे आँचल में तेरे जीवन का पल पल पलता चलता लेता सांस।।

मैं तेरे भाँवो कि जननी तेरे मात पिता की भूमि अविनि तेरी मातृ भूमि तेरा पुषार्थ पराक्रम मान।।

मेरे एक टुकड़े की खातिर जाने कितने महासमर हुये मैं तो युग ब्रह्मांड प्राणि की माँ।।

जात पांत धर्म भाषा बोली तुमने कर डाले जाने कितने टुकड़े बांट लिया मेरे आँचल को चिथड़े चिथड़े ।।

मैं अविनि युग मानव करती तुमसे विनती मेरे टुकड़े ना होने दो ।।

तेरी खुशियों की खातिर टुकड़ो में बंट जाना भी दुःख दर्द नही।।

मेरी हद हस्ती को कुचल रहे प्रतिदिन मर्माहत रोती हूँ।।

तुमसे यही याचना मैं जननी जन्म भूमि हूँ वसुंधरा धरा करती हूँ धारण तुझको मेरी लाज बचाओ तुम।।

मैं मिट ना जाऊं अपना कर्तव्य निभाओ तुम।।

प्रकृति मेरा है प्राण मेरे यौवन का श्रृंगार मेरा प्राण बचा रहे शुख शांति पाओ तुम।।

जल ही जीवन जल अविरल निर्झर निर्मल मेरी जीवन रेखा ।।

जल संरक्षण मेरा संवर्धन धर्म ज्ञान विज्ञान जान।।

वन ही जीवन जंगल पेड़ पौधे
तेरे लिये ही तेरी खातिर तेरा मंगल।।

प्रकृति पर्यावरण मेरे दो आवरण
ना दूषित कर संकल्प तुम्हे लेना
है ।।

पृथ्वी प्रकृति पर्यावरण में ही तुझको जीना मरना है तुझको ही निर्धारित करना है।।

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