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11 Feb 2024 · 1 min read

अपने ही चमन के फूल थे वो

काँटे बनकर सीने मे चुभे
अपने ही चमन के फूल थे वो
अब नाम से भी जो जलते हैं
इस दिल के कभी हुजूर थे वो

हर सितम सहे और हँसते रहे
लब से उफ तलक नहीं निकली
अपने ही सर इल्जाम लगा
अपने अपने तो वसूल थे वो

लाख वादे याद दिलाये पर
सेहरे मे हँसकर जा बैठे
हाँथों मे मेहंदी रचाने को
देखो कितना मजबूर थे वो

नादां पागल या दीवानें
जो भी थे क्या खूब थे हम
हर आह मे जिसका नाम लिया
दिल की अदालत में बे कसूर हैं वो
(स्वरचित मौलिक रचना)
M.Tiwari”Ayan”

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