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10 Feb 2024 · 1 min read

हाइकु – डी के निवातिया

हाइकु
***

ऊँघती धरा,
भरे जो अंगड़ाई,
क्रूर क्रंदन !!

***
ओस की बूँद
ललाट सजाकर,
रिझाते पुष्प !!

***
बसंत राग,
गाता है जब फाग,
झूमती धरा !!

***
मधुमास में,
गुर्राते घन करें
अठखेलियां !!

***
टूटते गिरी,
उफनती नदियां
रोष जताते !!

***
बैलो के संग,
स्वयं को भी हाँकता,
बूढ़ा किसान !!

****************
स्वरचित मौलिक
हाइकुकार : डी के निवातिया

1 Like · 162 Views
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