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8 Feb 2024 · 1 min read

कटा के ये पर आसमां ढूंढ़ती है...

कटा के ये पर आसमां ढूंढ़ती है…
इक नन्ही सी चिड़िया जहां ढूंढती है..

घटाओ के झोंको की भूखी थी वो..
अब पिंजरों में बाकी हवा ढूंढ़ती है…

हर ज़र्रे पे अपने निशां ढूंढ़ती है..
वो पैरो तले आसमां ढूंढ़ती है..

गलीचो में खाली समां ढूंढती है..
ये खुद ही ना जाने की क्या ढूंढती है..

इनायत की ”उसकी” है ये इल्तज़ा..
मिटा के वो ‘ घर अब मकां ढूंढती है..

उड़ानों की प्यासी कुंआ ढूंढती है…
फरिश्तों की बेटी दुआ ढूंढती है..

अता ढूंढती है पता ढूंढती है…
खुद ही में खुद लापता ढूंढती है..

बनावट की दुनिया से थक जो गई..
जला के शहर फिर धुआं ढूंढती है..

कटा के ये पर आसमां ढूंढती है…
इक नन्ही सी चिड़िया जहां ढूंढती है..
©Priya maithil

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