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8 Feb 2024 · 1 min read

बेटियां

सारे घर के काम भी करती हैं बेटियां,
इतना करके भी बहुत पढ़ती हैं बेटियां।

बेटों से ज्यादा सब कुछ करती हैं बेटियां,
फिर भी जन्म से पहले मरती हैं बेटियां।

अपने हुनर का लोहा मना रही हैं बेटियां,
नित नए आयाम बना रही हैं बेटियां।

दो – दो घरों को भी संभाल लेती हैं बेटिया,
एक अपने को छोड़ दूजे के संग रह लेती हैं बेटियां।

हक के लिए फिर क्यों उनको करनी पड़ती है लड़ाई,
जिस घर में भी रहती वो उसमें ही कही जाती हैं पराई।

कब जगेगी सुप्त समाज की चेतना,
कोई क्यों ना समझता बेटी की वेदना।

जिससे दो घर रोशन हों बेटी ही ऐसा चिराग है,
जग के पोषण के खातिर वो करती बहुत से त्याग है।

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