Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Feb 2024 · 1 min read

खुदा की चौखट पर

खुदा की चौखट पर ना दुआ कबूल हुई,
निकली कभी बद्दुआ वो भी ना कबूल हुई।

उल्फत भरी ज़िन्दगी कशमकश का रेला,
मुश्किलों का अड्डा सुगमता ना कबूल हुई।

रिश्तों की डोर में पतंग का मांझा ऐसा उलझा,
सुलझाते रहे डोर को हम प्रीत ना कबूल हुई।

ज़माने ने हमें लोगों की नज़रों में इतना गिराया,
अच्छा बनना चाहा पर अच्छाई कहां कबूल हुई।

बदनामी की चादर ‘राज ‘ पर डाल दी लोगों ने,
बूरे बन कर रहना लगा अच्छा चाहत कबूल हुई।।

डा राजमती पोखरना सुराना

Loading...