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4 Feb 2024 · 1 min read

गरीब–किसान

कभी बाढ ने लुटा,
कभी सुखे ने,
कभी कोरोना बीमारी से लुट गया,
लुटाना जिसके नियत है,
वह कोई नहीं गरीब–किसान हैं ।

फसल मे नुकसान,
राहत के इरादे,
दर–दर भटक रहे हैं,
भटकना जिसके विवशता हैं,
वह कोई नहीं गरीब–किसान हैं ।

जल, मलखाद् अभाव,
खुनपसिने से किई सिंचाई,
इसपर सरकार की वीमा योजना हैं,
पर अफिसियल झंझट जिसके मजबुरी हैं,
वह कोई नहीं गरीब–किसान हैं ।

मिट्टी हैं,
पहले जैसा गुणवत्ता उसमे कहाँ,
फिर भी बेहत्तर उत्पादकता के लिए दौढ रहे हैं,
परन्तु मेहनत सभी जिसके बेकार हैं,
वह कोई नही गरीब–किसान हैं ।

निवेश की गुंजाईश नहीं कोशो दूर ,
ऋण, आधुनिक तकनीक से रिस्ता नही दूर–दूर,
फिर भी सहायता के उम्मिद में आकाशफल चक रहे हैं,
वह कोई नहीं गरीब–किसान हैं ।

दिल्ली दरबार,
या फिर सिंहदरबार की ओर हो कुच,
कडक ठंड मे सडक पर उष्मा भर रहे हैं,
उधर बहरे भारतीय सत्ता ईधर भी वही बाध्यता हैं,
वह कोई नहीं गरीब–किसान हैं ।

#दिनेश_यादव
काठमाण्डौं (नेपाल)
#हिन्दी_कविता #Hindi_Poetry

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