'प्रहरी' बढ़ता दंभ है, जितना बढ़ता नोट
‘प्रहरी’ बढ़ता दंभ है, जितना बढ़ता नोट
निर्धन को है मानता, जग यह सिक्का खोट।
a m prahari
‘प्रहरी’ बढ़ता दंभ है, जितना बढ़ता नोट
निर्धन को है मानता, जग यह सिक्का खोट।
a m prahari