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1 Feb 2024 · 1 min read

औरतें ऐसी ही होती हैं

औरतें मन से टूट कर भी
अपनों का सहती हैं ,

औरतें ज़िंदा रहकर भी
अपनों के लिए मरती हैं ,

औरतें भूखी रहकर भी
अपनों को पेट भरा है कहती हैं ,

औरतें दुखी रहकर भी
अपनों के आगे मुस्काती हैं ,

औरतें गालियां सुन कर भी
अपनो की रक्षा के लिए मंत्र बोलती हैं ,

औरतें वसीयत में हिस्सा ना होकर भी
अपनों की मुसीबत में अपने गहने तौलती हैं ,

औरतें ख़ास ओहदों पर होकर भी
अपनों के आगे आम ही कही जाती हैं ,

औरतें अपनी रक्षा हेतु किसी को आगे ना बढ़ता देखकर भी
अपनों की रक्षा के लिए चंडी बन जाती हैं ,

औरतें उपरी सब बातें सही होते हुए भी
अपनों के लिए इन सारी बातों को नकारती हैं ,

औरतें गलत ना होकर भी
अपनों के लिए ख़ुद को गलत स्वीकारती हैं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )

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