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31 Jan 2024 · 1 min read

** मुक्तक **

** मुक्तक **
भोर की शुभ घड़ी आ रही सामने।
छोड़ दो स्वप्न देखे बहुत रात ने।
मौन से हैं अधर मुस्कुराहट खिली।
तितलियां अलि सभी लग पड़े जागने।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ३१/०१/२०२४

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