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30 Jan 2024 · 1 min read

दिन सुखद सुहाने आएंगे...

बीतेंगी रातें गम की दिन, सुखद सुहाने आएंगे।
आज नहीं तो कल वो तेरे, नाज उठाने आएंगे।

कचरे पर जो बैठे अकड़े, कूड़ा तुझको समझ रहे।
वही कभी जूड़े में तेरे, फूल सजाने आएंगे।

आँखों पर पट्टी बाँधे हैं, समझें कैसे बुरा-भला ?
अक्ल के अंधे कभी न कभी, सही ठिकाने आएंगे।

करो फिक्र बस केवल अपनी, अक्ल घुमाना बंद करो।
बीतेगी जब खुद पर खुद हर, बात बताने आएंगे।

रो-रोकर हलकान न हो यूँ, धीर धरा -सा धार मना।
मुस्कुराने के और अभी, कितने बहाने आएंगे।

बात-बात पर कर देते जो, फरमान तुगलकी जारी।
बात में ऐसे सिरफिरों की, कौन सयाने आएंगे ?

नाफरमानों की बस्ती में, कहो गुजारा कैसे हो,
चढ़े बना जो हमको सीढ़ी, हमें झुकाने आएंगे।

दग्ध प्राण भौतिक तापों से, रहते जो संतप्त सदा।
जल में पावन सरयू के, मन-दीप सिराने आएंगे।

झूठी दुनिया रचने वाले, ढोंग-छलावा करते हैं।
‘सीमा’ सच्चे कभी यहाँ क्यों, नगर बसाने आएंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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