Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
28 Jan 2024 · 1 min read

मुक्तक...छंद-रूपमाला/मदन

१-
ढूँढते हैं प्राण पागल, धूप में भी छाँव।
चाँदनी नीचे बिछी पर, जल रहे हैं पाँव।
शांत नीरव रात में भी, मचा मन में शोर।
चाँद गुपचुप नैन खोले, देखता इस ओर।

२-
दे रहे जो दासता को, बेबसी का नाम।
कर रहे वे साथ अपने, खुदकुशी का काम।
मन उड़े स्वच्छंद नभ में, ले हवा में साँस।
दो पलों की जिंदगानी, उस पर ये उसाँस।

३-
फूस की है नींव जिस पर, मोम की दीवार।
आँसुओं के साथ अरमां, कर रहे चीत्कार।
और क्या-क्या देखना है, हे जगत-कर्तार ?
देख कितना दर्द मन को, दे रहा संसार।

४-
रूपमाला या मदन सा, खुशनुमा आगाज।
चाँद सा मुखड़ा दमकता, चाँदनी का ताज।
शुभ सधे श्रंगार सोलह, सोहते सुर साज।
हसरत भरा नभ भी जमीं, तक रहा है आज।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Loading...