Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jan 2024 · 1 min read

भुक्त – भोगी

, भुक्त-भोगी

हृदय के कितनी निकट हो,
यह हृदय,ही जानता है !
दूर जाते हो जभी भी;
मचलता , कब मानता है !!

रात में जब आँख खुलती,
चाहती तुम्हें देखना !
किंतु ये दुनियां है यारो ;
निकटता कब मानता है !!

स्वप्न में तुम को सजाकर,
बात करता हूँ बहुत !
किंतु जब उत्तर न मिलता;
खुद से उत्तर माँगता है !!

पीत च॔दन त्रिकुटि पर जब,
देखता हूँ मैं तुम्हारे !
मन भी होता पीतमय तब;
कमल होना चाहता है !!

हाथ का स्पर्श पाना ,
है कठिन मेरे लिए !
सूर्य को भी अंक भर लूँ;
खाक हो कब जानता है !!

नींद से भी नींद में जब,
स्वप्न आएँगे तुम्हारे !
बस वही सौगात होगी;
हृदय,यह ही जानता है!!

आप से यह दोस्ती कर ,
जान पाया हूँ अभी तक !
जो तुम्हें जितना नकारे ;
नेह उतना मानता है !!

प्यार का इतिहास लिख-लिख,
बाँट दूँगा में जहाँ में !
कौन कीमत जान पाया;
भुक्त भोगी जानता है !!
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राम स्वरूप दिनकर, आगरा
विशुद्ध आत्म-चिंतन
————————————–

292 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ramswaroop Dinkar
View all

You may also like these posts

किराये का मकान
किराये का मकान
Shailendra Aseem
आदिवासी होकर जीना सरल नहीं
आदिवासी होकर जीना सरल नहीं
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
ज़िन्दगी की उलझनों के सारे हल तलाश लेता
ज़िन्दगी की उलझनों के सारे हल तलाश लेता
Dr fauzia Naseem shad
जता दूँ तो अहसान लगता है छुपा लूँ तो गुमान लगता है.
जता दूँ तो अहसान लगता है छुपा लूँ तो गुमान लगता है.
शेखर सिंह
चंद्रमा तक की यात्रा
चंद्रमा तक की यात्रा
Savitri Dhayal
जनतंत्र
जनतंत्र
अखिलेश 'अखिल'
आखिरी खत
आखिरी खत
Kaviraag
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
जख्म हरे सब हो गए,
जख्म हरे सब हो गए,
sushil sarna
व्यावहारिक सत्य
व्यावहारिक सत्य
Shyam Sundar Subramanian
" दर्द "
Dr. Kishan tandon kranti
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
सपनों की इस आस में,सफलता की भीनी प्यास में,
सपनों की इस आस में,सफलता की भीनी प्यास में,
पूर्वार्थ
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ??
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ??
दीपक झा रुद्रा
अपने वही तराने
अपने वही तराने
Suryakant Dwivedi
..
..
*प्रणय प्रभात*
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
Rj Anand Prajapati
ଏହା ହେଉଛି ସମୟ
ଏହା ହେଉଛି ସମୟ
Otteri Selvakumar
संघर्ष से अनुकूल इंसान, डरता जरूर है पर हारता नहीं है।
संघर्ष से अनुकूल इंसान, डरता जरूर है पर हारता नहीं है।
manjula chauhan
हिंदू सनातन धर्म
हिंदू सनातन धर्म
विजय कुमार अग्रवाल
प्रस्तावना
प्रस्तावना
Manoj Shrivastava
आओ घर चलें
आओ घर चलें
Shekhar Chandra Mitra
** मुक्तक **
** मुक्तक **
surenderpal vaidya
जीवन ज्योति
जीवन ज्योति
Neha
चुनाव का मौसम
चुनाव का मौसम
Sunny kumar kabira
हर दिन नया कुरुक्षेत्र...
हर दिन नया कुरुक्षेत्र...
पं अंजू पांडेय अश्रु
क्या कहूँ
क्या कहूँ
Ajay Mishra
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दूसरों के दिलों में अपना घर ढूंढ़ना,
दूसरों के दिलों में अपना घर ढूंढ़ना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
इतनी शिद्दत से प्यार कौन करे
इतनी शिद्दत से प्यार कौन करे
प्रकाश कुमार "बाग़ी"
Loading...