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25 Jan 2024 · 1 min read

मैं बंजर हूं

हां, शायद मैं बंजर हो गया हूं,
किसी से भी अपने मन की बात नही कह पाता हूं।
लोगों से बात करने में थोड़ा सहम सा जाता हूं,
अपने मन की कहना तो दूर कोई भटकता ही नहीं आसपास
या लोगों के मन का मेरे मन से मैल नहीं खाता है,
शायद इसीलिए कोई भी मुझसे आसानी से जुड़ नहीं पाता है।
शायद मै लोगो के लिए जिंदगी का एक ठहराव हूं,
इसलिए कोई भी अधिक देर तक नहीं रुकता मेरे साथ में।
अपने मन की कहना तो दूर, कोई सुनना भी नहीं चाहता मेरे मन की।
हां, शायद मैं बंजर हो गया हूं।
🥺🥺🥺🥺🥺🥺
🙏🙏🙏🙏
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:- बनेड़ा (राजपुर)

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