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24 Jan 2024 · 1 min read

अच्छा लगा

मुद्दतों बाद शफ़क़ बूक-ओ-मगर अच्छा लगा
आप जिस नज़र से देख रहे नज़र अच्छा लगा

रंज अफ़्सुर्दगी अज़ाब दर्द सब मरहम हुआ
उफ़ आपसे टकराना सर-ब-सर अच्छा लगा

वैसे तो देखता रहता फ़क़त रु आपका वैसे
जुल्फ़ ए परेशान में यूँ मू-कमर अच्छा लगा

मुझको इल्म है ढह जायेगा आज न कल लेकिन
आपके संग ख्वाबों का ये कच्चा घर अच्छा लगा

सोच सोच कर ग़ज़ल नग्में कह रहा मैं कामिल
आख़िर कोई इतना मुझको क्यों कर अच्छा लगा

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