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23 Jan 2024 · 1 min read

पनघट के पत्थर

कुछ यूं
कहते हैं
पनघट के घिसे पत्थर
तुम क्यों अभिमान करते हो
निरीह बेजुबा हैं जो
उनकी जिंदा लाशों पर
सीना तान चलते हो
गर लगी वक्त की ठोकर
कोसों दूर जा गिरोगे
और फिर हमारी तरह
पनघट के पास रहकर भी
कड़ी धूप में जलकर
प्यासे मरोगे
प्यासे मरोगे ।

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