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22 Jan 2024 · 1 min read

अपनी काविश से जो मंजिल को पाने लगते हैं वो खारज़ार ही गुलशन बनाने लगते हैं। ❤️ जिन्हे भी फिक्र नहीं है अवामी मसले की। शोर संसद में वही तो मचाने लगते हैं।

अपनी काविश से जो मंजिल को पाने लगते हैं।
वो खारज़ार ही गुलशन बनाने लगते हैं।
❤️
जिन्हे भी फिक्र नहीं है अवामी मसले की।
शोर संसद में वही तो मचाने लगते हैं।
❤️
कोई भी रिश्ते तगाफुल से यूं नही बनते।
इन्हें बनाने में लोगों जमाने लगते हैं।
❤️
कोई दिलचस्पी नहीं है हमारी हालत पर।
उन्हें तो इश्क के किस्से फसाने लगते हैं।
❤️
खुदा बचाए ऐसे दोस्त ऐसे दुश्मन से।
दौरे गर्दिश में जो नज़रे चुराने लगते है।
❤️
सगीर उसने दिए जख्म बेवफाई के।
बहुत भुलाओ मगर याद आने लगते हैं।

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