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19 Jan 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

गुलों में खुशबू हूँ भरने दे मुझे
टूटकर अब तो विखरने दे मुझे

फिज़ां में सख़्त सियासत है अभी
सुकूँन में हवा से गुज़रने दे मुझे

दूर बैठा मज़लूम बहुत है भूखा
हलक़ में ख़ुद के उतरने दे मुझे

रौंदा इक तितली को दरिन्दे ने
बनके आँखों से लहू झरने दे मुझे

मुझमें मज़हब का तिज़ारत न देख
‘महज’ इंसां हूँ ख़ुदा से डरने दे मुझे

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