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15 Jan 2024 · 1 min read

* पहचान की *

** गीतिका **
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है जरूरत नहीं आज पहचान की।
देख लो रौशनी खूब दिनमान की।

फूल खिलने लगे मुस्कुराने लगे।
खूब कीमत रही आज मुस्कान की।

मुश्किलें जब कभी सामने आ गयी।
चाहतें हो गयी व्यर्थ नादान की।

पूछता जो रहा मंजिलों का पता।
कुछ करेंगे मदद आज अंजान की।

वक्त पर जब नहीं हो रही बारिशें ।
बात करते रहे ज्ञान विज्ञान की।

पूर्ण कर्तव्य अपना समझ कर करें।
अब जरूरत नहीं व्यर्थ गुणगान की।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/०१/२०२४

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