Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Dec 2023 · 2 min read

बचपन का प्यार

बचपन का प्यार

“पापा, जब आप मेरी उम्र के थे, तो छुट्टी के दिन आपका समय कैसे बीतता था ?” दस वर्षीय बेटे ने अपने पिताजी से पूछा।
“बेटा, तुम्हारी उम्र में हम छुट्टी के दिन खूब मस्ती करते थे। खूब धमाचौकड़ी मचाते थे। सब लोग बहुत इंज्वॉय करते थे।” पिताजी ने बताया।
“अच्छा, किनके साथ खेलते थे ? मस्ती करते थे ?” बेटे ने पूछा।
“अपने दोस्तों और भाई-बहनों के साथ खेलते थे। बुआ और चाचाजी के साथ खूब मस्ती करते थे। पापा-मम्मी, दादा दादी के साथ भी मस्ती करते थे। हमारे दादाजी अक्सर हमें कंधे पर बिठाकर बाहर घुमाने ले जाते थे। क्या दिन थे वो।” पिताजी अतीत में खो गए थे।
“और टी.व्ही. कब देखते थे ? मोबाइल और विडिओ गेम ?” बेटे ने पूछा।
“हा… हा… हा… बेटा तब ये सब कहाँ थे। एक टी.व्ही. ही था, जिसमें एक-दो चैनल ही आते थे। मोबाइल और विडिओ गेम का तो नाम भी नहीं सुना था हमने।” पिताजी ने बताया।
“पापा, मेरे कोई भी भाई-बहन नहीं हैं। दोस्त भी बहुत कम हैं। सब ट्यूशन, टी.व्ही., मोबाइल और विडिओ गेम में बिजी। आप नौकरी में और मम्मी घर के कामकाज और मोबाइल में बिजी। मैं बहुत बोर हो जाता हूँ। हमारे दादा-दादी भी साथ में नहीं रहते। मम्मी और आप छुट्टी के दिन भी मेरे साथ नहीं खेलते। क्या आपको, मम्मी को या दादा-दादी को मेरे साथ खेलने का मन नहीं करता ? पापा, क्या मेरा बचपन यूँ ही टी.व्ही., मोबाइल और विडिओ गेम खेलते ही बीत जाएगा ?” बेटे ने बड़ी ही मासूमियत से पूछा।
पिताजी ने बेटे को सीने से लगाकर कहा, “नहीं बेटा, हम प्रॉमिस करते हैं कि अब हम मोबाइल और टी.व्ही. के साथ कम और आपके साथ ज्यादा समय बिताएँगे। चलो, मम्मी से बात करते हैं और तुम्हारे दादा-दादी को भी हमारे साथ यहाँ रहने के लिए ले आते हैं। वे भी तुम्हारे साथ खूब मस्ती करना और खेलना चाहते होंगे। तुम उन्हें बुलाओगे, तो वे कभी मना नहीं करेंगे। मेरे पापाजी यानि तुम्हारे दादाजी तो टीचर भी थे। वे तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई और होमवर्क में भी हेल्प कर सकते हैं। तुम्हारी दादी माँ के पास तो असंख्य कहानियों का खजाना है। उनके साथ तुम कभी बोर हो ही नहीं सकते।” पिताजी ने कहा।
“फिर देर क्यों ? मैंने आप लोगों की बातें सुन ली हैं। आज आप दोनों की छुट्टी है। चलिए, मम्मी पापा से मिलने।” मम्मी बोलीं।
“हुर्रे…” बेटा प्रफुल्लित था और मम्मी-पापा उसे देख निहाल हुए जा रहे थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
409 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

वर्तमान लोकतंत्र
वर्तमान लोकतंत्र
Shyam Sundar Subramanian
बाल कविता
बाल कविता
Raj kumar
दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
sushil sarna
गरीबी एक रोग
गरीबी एक रोग
Sunny kumar kabira
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
मुझे पढ़ना है, तो क़िताब पढ़ना सीख लो तुम
मुझे पढ़ना है, तो क़िताब पढ़ना सीख लो तुम
करन ''केसरा''
पैसे की क़ीमत.
पैसे की क़ीमत.
Piyush Goel
है पुण्य पर्व 'पराक्रम दिवस' का आज!
है पुण्य पर्व 'पराक्रम दिवस' का आज!
Bodhisatva kastooriya
मन भारी है
मन भारी है
Ruchika Rai
कोरोना
कोरोना
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
पानी बरसे मेघ से
पानी बरसे मेघ से
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
..
..
*प्रणय प्रभात*
जो श्रम में अव्वल निकलेगा
जो श्रम में अव्वल निकलेगा
Anis Shah
अधिकतर प्रेम-सम्बन्धों में परिचय, रिश्तों और उम्मीदों का बोझ
अधिकतर प्रेम-सम्बन्धों में परिचय, रिश्तों और उम्मीदों का बोझ
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
3325.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3325.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
आदमी
आदमी
अखिलेश 'अखिल'
"राजनीति में जोश, जुबाँ, ज़मीर, जज्बे और जज्बात सब बदल जाते ह
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
हमने गुजारी ज़िंदगी है तीरगी के साथ
हमने गुजारी ज़िंदगी है तीरगी के साथ
Dr Archana Gupta
संदेश
संदेश
लक्ष्मी सिंह
कत्ल कर जब वो कातिल गया
कत्ल कर जब वो कातिल गया
सुशील भारती
"किनारे से"
Dr. Kishan tandon kranti
मोही  हृदय  अस्थिर,  व्यथित
मोही हृदय अस्थिर, व्यथित
Priya Maithil
राजनीतिक योग
राजनीतिक योग
Suryakant Dwivedi
शबाब देखिये महफ़िल में भी अफताब लगते ।
शबाब देखिये महफ़िल में भी अफताब लगते ।
Phool gufran
अब फिक्रमंद नहीं हूँ मैं
अब फिक्रमंद नहीं हूँ मैं
हिमांशु Kulshrestha
अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
Dr fauzia Naseem shad
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
इन हवाओं को महफूज़ रखना, यूं नाराज़ रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
पूर्वार्थ
जीवन में असफलता के दो मार्ग है।
जीवन में असफलता के दो मार्ग है।
Rj Anand Prajapati
अंगराज कर्ण
अंगराज कर्ण
श्रीहर्ष आचार्य
Loading...