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22 Dec 2023 · 1 min read

*माटी की संतान- किसान*

माटी की संतान- किसान

माटी कहे या मिट्टी
मेरे रूप अनेक
मैं हूँ रूप विधाता का
मुझसे महके परिवार अनेक।

मैं माटी की संतान
मेरा नाम किसान
बिन माटी के मूरत ना बने
ना बन सके कोई मकान।
मुझमे उगते फूल अनेक
मुझमें उगता भरपेट अनाज
और इन सब का कर्ताधर्ता
मेरा मित्र किसान।

मैं लहराऊ तो व्यापारी बन जाऊं
मैं चाहूं तो घर-घर खुशबू फैलाऊ
फूल उगाकर घर महकाऊ
अन्न उगाकर देश की शान बढ़ाऊ
मैं मिट्टी का मिट्टी मेरी
मैं उसका दोस्त कहलाऊ।

हरमिंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक रचना

4 Likes · 2 Comments · 678 Views
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