Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 2 min read

तेवरी-आन्दोलन परिवर्तन की माँग +चरनसिंह ‘अमी’

————————————–
परिवर्तन प्रक्रिया के लिए मुख्यतः तत्कालीन परिवेश, माँग, परम्परा, मूल्य, अधिक जिम्मेदार होते हैं। साहित्य के संदर्भ में कहें तो जब भी अभिव्यक्ति, समाजगत-आदमीगत नये आयाम तलाशती है, वह पिछला पूरी तरह खंडित तो नहीं करती किन्तु बहुत हद तक उसे स्वीकारने में हिचकिचाती जरूर है। यह निर्विवाद रूप से स्वीकार्य होना चाहिए कि अभिव्यक्ति इस प्रचलित रूप में संकुचित होती जा रही है, समुचित रूप से अपनी बात नहीं कह पा रही है। या यूँ कहें कि कब उसको नये अर्थ-संदर्भ या मूल्य को अभिव्यक्ति देने में वर्तमान प्रचलित रूप असमर्थ है। बहरहाल यहीं से परिवर्तन की माँग उठने लगती है, जो निरंतर तेवरी को स्थापना की ओर अग्रसर करती है।
ग़ज़ल का अपना एक कोण रहा है। वह दायरों में बँधी रहे, आवश्यक नहीं है। किसी भी विधा के लिए यह जरूरी शर्त भी है कि वह दायरा तोड़े। किन्तु ग़ज़ल को दायरे में बाँधकर रखा जाना ही श्रेयस्कर साबित नहीं हुआ। हालांकि उसकी छटपटाहट महसूस की जाती रही। प्रेमी-प्रेमिका को साँसों के दरम्यान टकराने वाली ग़ज़ल, प्रेमिका के जूड़े में गुलाब की तरह खुँसती रही। किन्तु जब वह वहीं उलझकर रह गयी तो उसे किसी ने भी बाहर निकालने की कोशिश नहीं की। ऐसे में गुलाब की जगह यदि ‘तेवरी’ ने आकर क्लिम्प खोंस दिया तो इसमें जूड़े की सुन्दरता घट तो गई? क्या जूड़े को और अधिक सुहढ़ता नहीं मिली? कभी-कभार यह पिन सिर के भागों में चुभ भी गयी तो यह क्षम्य होना चाहिए |
यदि तेवरी को अतिक्रमणकारी प्रवत्ति में देखे तो उसके सन्दर्भ में तमाम बातें वाजिब ठहरती हैं। तेवरी की इसी जुर्रतबाजी के कारण ही ग़ज़ल के कुछ हिमायतदार तेवरी को इतने सीधे स्वीकार नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर इतनी क्षमता वे स्वयं मैं पैदा भी नहीं कर पाये हैं।
तेवरी के अपने निजी तेवर हैं, अपनी बौखलाहट है। आज बौखलाया-टूटा हुआ आदमी यदि अचानक मुँहफट हो जाए, मारने के लिए ईंट उठा ले, अधिकारों के लिए सीधे-सीधे गालीगलौज पर उतारू हो जाए और चीखे तो इसमें ग़ज़लकारों को तेवरीकारों को गरियाने की जरूरत क्या है? ग़ज़ल के हिमायती यह क्यों देखते हैं कि तेवरीकार क्या चिल्ला रहा है? वे यह क्यों नहीं देखते हैं कि वह क्यों चिल्ला रहा है? असल में बहस का मुद्दा भी यही दूसरी बात होनी चाहिए।
इसमें उलझने से हमें कुछ नहीं मिलेगा कि तेवरी विधा है या नहीं। यह स्थापित होगी या नहीं? परिभाषा और मुख्य आधार क्या हो? क्या तेवरी युगबोध को पूरी तटस्थता से देखेगी? ये मुद्दे बड़े हैं। इन पर तत्काल बहस करने की कतई आवश्यकता नहीं है।
बहस तत्काल इस पर की जानी चाहिये कि तेवरी को हम इतना जरूरी क्यों महसूस कर रहे हैं? आज के संदर्भ में उसके लिए हम कितनी रचनात्मक ऊर्जा चुका रहे हैं?
बहरहाल तेवरी को सजग आन्दोलन का रूप दिया जाना नितांत अपेक्षित है। ‘तेवरीपक्ष’ निकालकर अलीगढ़ से श्री रमेशराज व उनके साथियों ने दुस्साहस किया है। एक कड़वा सच सामने है। तेवरी काफी देर से सामने आयी। खैर! देर आयद, दुरुस्त आयद!

158 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

श्रेष्ठ विचारों को वाणी का आभूषण मात्र बनाने से कल्याण नहीं
श्रेष्ठ विचारों को वाणी का आभूषण मात्र बनाने से कल्याण नहीं
ललकार भारद्वाज
खड़ा रहा बरसात में ,
खड़ा रहा बरसात में ,
sushil sarna
तकनीकी की दुनिया में संवेदना
तकनीकी की दुनिया में संवेदना
Dr. Vaishali Verma
एक वो भी दौर था ,
एक वो भी दौर था ,
Manisha Wandhare
*उसकी फितरत ही दगा देने की थी।
*उसकी फितरत ही दगा देने की थी।
अश्विनी (विप्र)
इम्तिहान
इम्तिहान
AJAY AMITABH SUMAN
3642.💐 *पूर्णिका* 💐
3642.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Last Post of 2024..📃
Last Post of 2024..📃
पूर्वार्थ
शबनम
शबनम
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
- बहुत याद आता है उसका वो याराना -
- बहुत याद आता है उसका वो याराना -
bharat gehlot
मंजिल की चाह
मंजिल की चाह
Anant Yadav
मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को
मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को
Buddha Prakash
#वो अजनबी#
#वो अजनबी#
Madhavi Srivastava
Revisiting the School Days
Revisiting the School Days
Deep Shikha
ख़ामोशी
ख़ामोशी
Dipak Kumar "Girja"
तेरे दिल में है अहमियत कितनी,
तेरे दिल में है अहमियत कितनी,
Dr fauzia Naseem shad
तेरे उल्फत की नदी पर मैंने यूंँ साहिल रखा।
तेरे उल्फत की नदी पर मैंने यूंँ साहिल रखा।
दीपक झा रुद्रा
जय माता कल्याणी
जय माता कल्याणी
indu parashar
कहो तो..........
कहो तो..........
Ghanshyam Poddar
प्रतिनिधित्व
प्रतिनिधित्व
NAVNEET SINGH
मैं बंजर हूं
मैं बंजर हूं
लक्की सिंह चौहान
हिदायत
हिदायत
Dr. Rajeev Jain
घड़ियां इंतजार की ...
घड़ियां इंतजार की ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
अंतहीन प्रश्न
अंतहीन प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
पदवी न काम आयेगा
पदवी न काम आयेगा
संजय निराला
अंतर मन की हलचल
अंतर मन की हलचल
कार्तिक नितिन शर्मा
बुद्ध होने का अर्थ
बुद्ध होने का अर्थ
महेश चन्द्र त्रिपाठी
पराया तो पराया ही होता है,
पराया तो पराया ही होता है,
Ajit Kumar "Karn"
Freedom
Freedom
SUNDER LAL PGT ENGLISH
धर्म पर हंसते ही हो या फिर धर्म का सार भी जानते हो,
धर्म पर हंसते ही हो या फिर धर्म का सार भी जानते हो,
Anamika Tiwari 'annpurna '
Loading...