नजाकत का भ्रम पाल करके रखिए।
दया से हमारा भरो माँ खज़ाना
जब रंग हजारों फैले थे,उसके कपड़े मटमैले थे।
सुनो, मैं सपने देख रहा हूँ
हवाओं से पूछो कि चलते हुए
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
क़िस्मत का सौदा करने चली थी वो,
कुछ बच्चों के परीक्षा परिणाम आने वाले है
आवाज़ दो, पुकारों ज़ोर से हमको।
मुहब्बत का अंजाम, सच्ची मुहब्बत
मन हमेशा एक यात्रा में रहा
"उलाहना" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD