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1 Dec 2023 · 1 min read

कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।

कुछ तो गम-ए-हिज्र था,कुछ तेरी बेवफाई भी।
रह रह कर यूं खलती रही,हमको ये तन्हाई भी।।
आदतन तो , अहल-ए-कफस हुए नही थे हम।
कुछ रस्म-ओ-रिवाज थे,और कुछ रुस्वाई भी।।
फकत तेरा तगाफुल ही,सबब नही बेचैनी का।
कुछ गैरों से कुरबत,कुछ रब्त-ए-शनासाई भी।।
काफिले से भटकने का,गुनहगार सिर्फ मै नही।
कुछ राहों के पेंच-ओ-खम, कुछ रहनुमाई भी।।
दरिया-ए-उल्फत का, साहिल हमे मिला नही।
कुछ नाखुदा नाराज था,और कुछ गहराई भी।।
मेरे जख़्म भी तो रात भर, सोने नही देते मुझे।
कुछ तो रात सर्द थी, और कुछ ये पुरवाई भी।।
फिर भी मगर क्यूं जिंदा हैं,तू ये ना पूछ हमसे।
ये हसरत-ए-दीदार,कुछ हौसलाअफजाई भी।।
एक सिर्फ तदबीर से भी,मंजिल मिलती नही।
ये जरूरी है कि साथ रहे,खुदा की खुदाई भी।।

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