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26 Nov 2023 · 1 min read

विद्यापति धाम

हे आदिकवि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम,

कविवर की निर्वाण भूमि यह,
रज-रज में यहाँ शान्ति व्याप्त है,
कण-कण में यहाँ साक्षात् शिव हैं,
यह योगभूमि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।

माता गंगा के धर्मपुत्र कवि,
अंत समय मिलने को आए,
अचल हुए जब इसी भूमि पर,
अविरल माँ आई इस धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।

महादेव के अनन्य भक्त कवि,
‘उगना’ बन शिव ने की चाकरी,
गंगा में जब समाधिस्थ हुए कवि,
प्रकट हुए ‘हर’ विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।

उगना-महादेव रूप प्रतिष्ठित,
महिमा उनकी है चहुँओर,
भक्त जनों के हृदय विराजित,
यह पुण्य भूमि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्- शत् प्रणाम।

मौलिक व स्वरचित
डॉ. श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 820 Views
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