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21 Mar 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

खुद को भी तो कभी चिट्ठियाॅं लिख
जो की हैं सभी वो गलतियाॅं लिख

इस तल्ख़ धूप में जल रहे हैं ये पाॅंव
छाॅंव के नाम कुछ अर्ज़ियाॅं लिख

तू औरों के मशविरे पर चलता रहा
अपनी भी तो कभी मर्ज़ियाॅं लिख

जिन सवालों से उलझता रहा ताउम्र
उन ज़वाबों की भी गुत्थियाॅं लिख

जो लोग आईने की तरह धुंधला गए
उनकी भी कभी ख़ुदगर्ज़ियाॅं लिख

जब भी पंख के माने पूछे ये ज़माना
तब तू हर्फ़-दर-हर्फ़ लड़कियाँ लिख

जो अरसे से बंद है दिल के कोने में
उन ख़्वाबों की भी खिड़कियाॅं लिख

‘निर्मोही’ मन को बच्चा समझ कर
अपने लिए रंगीन तितलियाॅं लिख

©️®️
श्याम निर्मोही
बीकानेर राजस्थान।
8233209330

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