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3 Nov 2023 · 1 min read

शीर्षक:जज़्बात ए ख़्याल

जज़्बात ए ख़्याल

भाग्योदय शायद मेरे लिए भी
बाहें फैलाता तो मुझमे जीने की
जिजीविषा पनपती नजर आती
पर न जाने क्यों किस्मत हर बार
आड़े आ जाती हैं और रह जाती हूँ
ठगी सी हर बार की तरह

मैं भी मुस्कुराना चाहती हूँ पर
रह जाती हूँ ठगी सी बिल्कुल खुशी के
बिल्कुल करीब आते आते ही
अपनी बदकिस्मती पर अफ़सोस मुझे
लिख देना चाहती हूँ आज कुछ पंक्तियां
हर्फ़ दर हर्फ़ स्वयं के लिए ही

रह जाये मेरे शब्द मेरे जाने के बाद भी
मेरी बदकिस्मती के चिन्ह लेखनी में मेरी
मैं भी ठहरना चाहती थी किसी के पलों में
पर बदकिस्मती का बहाव मुझे
न जाने कितनी दूर ले जाकर छोड़ आया
किनारे पर राह देखने को

डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद

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