अपने ग़मों को लेकर कहीं और न जाया जाए।
ज़िदा रह कर ही सुलझती हैं,
बदलती हवाओं का स्पर्श पाकर कहीं विकराल ना हो जाए।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
कर्मयोगी करें इसकी व्याख्या।
******* मनसीरत दोहावली-1 *********
गीतिका :- हमें सताने वाले
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
न जागने की जिद भी अच्छी है हुजूर, मोल आखिर कौन लेगा राह की द
"रंग भले ही स्याह हो" मेरी पंक्तियों का - अपने रंग तो तुम घोलते हो जब पढ़ते हो
*पद्म विभूषण स्वर्गीय गुलाम मुस्तफा खान साहब से दो मुलाकातें*
तन्हाई ही इंसान का सच्चा साथी है,
जहर मे भी इतना जहर नही होता है,