Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jan 2024 · 12 min read

जीवन जोशी कुमायूंनी साहित्य के अमर अमिट हस्ताक्षर

जीवन परिचय-
( क)-जन्म –

लीलाधर जोशी न्याय विभाग में मुंसिफ पद पर कार्यरत थे जिला शहर उनका ताबादला होता रहता था सफीपुर जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश में उन दिनों तैनाती थी जब 23 अगस्त सन 1901 में पत्नी कौशल्या ने एव बालक को जन्म दिया जीवन नाम का यह बालक बचपन मे बहुत चंचल और शरारती था ।

पिता ने पढ़ने लिखने में जीवन कि कोई दिलचस्पी नही थी वह दिन भर पतंग उड़ाता एव ताश खेलता 1903 में ताबादले के बाद लीलाधर जी परिवार के साथ लखनऊ रहने लगे ।

पतंग बाजी के दीवाने जीवन को मुहल्ले वाले लड़के पतंग वाले भैया के नाम से जानते।

(ख)-शिक्षा –

पढ़ने में बिल्कुल रुचि नहीं थी पढ़ने के लिए बैठते ही नही थे तब पिता ने अक्षर ज्ञान कराने का तरीका निकाला ताश कि नई गड्डी ले आये एव उसके पत्तो पर स्वर व्यंजन तथा गिनतियां लिख दी बोले ताश खेलो तब जीवन खुशी खुशी ताश खेलने बैठ जाते और खेलते खेलते सीखते रहते इक्का माने अ बादशाह माने आ इस तरह पढ़ना लिखना शुरू हुआ एव पढ़ाई में रुचि शुरू हुई।

सन 1912 में पिता लीलाधर का स्थानांतरण बहराइच हो गया तब तक बालक जीवन कि स्कूली पढ़ाई शुरू नही हुई थी लेकिन वह तरह तरह की किताबें पढ़ने लगे थे ।

पिता लीलाधर के मित्र आशुतोष हाजरा स्कूल हेडमास्टर थे एक दिन हाजरा जी अपने मित्र लीलाधर जोशी के घर आये तो उनके बेटे जीवन जोशी को देखा और पूछा किस दर्जे में पढ़ते हो तब पिता लीलाधर ने मित्र हाजरा को बताया कि जीवन ने अभी तक स्कूल नही देखा है ।

हाजरा जी ने दूसरे ही दिन पिता पुत्र को स्कूल बुलावाया दूसरे दिन पिता पुत्र लीलाधर एव जीवन स्कूल पहुंचे हेडमास्टर ने जीवन से पूछा क्या क्या पढ़ सकते हो और मुस्कुराते हुए अंग्रेजी कि एक पुस्तक पढ़ने के लिए खोल दी और कहा पढ़ो जो पन्ना खुला उंसे जीवन ने फटाफट पढ़ लिया हेडमास्टर ने खुश होकर पीठ थपथपाई और बताया कि जीवन जिस पुस्तक को पढ़ रहा था वह कक्षा सात की पुस्तक थी और उसी दिन कक्षा सात में उनको दाखिला मिला ।

सन 1912 में नैनी ताल में पिता लीला धर का निधन हो गया इस आघात के बाद परिवार अल्मोड़ा आ गया किशोर जीवन चंद्र ने हाई स्कूल अल्मोड़ा से पास किया ।

उन दिनों अल्मोड़ा की साहित्यिक सांस्कृतिक चेतना एव सक्रियता अद्वितीय थी जीवन चन्द्र के साथ पढ़ने वाले विद्यार्थियों में सुमित्रानंदन पंत, इलाचन्द्र जोशी,गोबिंदवल्लभ पंथ नाटककार, जैसे नाम थे जो बाल्य काल से ही साहित्य संस्कृति में सक्रिय थे हाई स्कूल में पढ़ते हुए मर्चेंट ऑफ वेनिस एव बीर अभिमन्यु जैसे नाटकों का मंचन किया जिसमें विलियम शेक्सपीयर के नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस में क्रूर शायलाक कि भूमिका जीवन चन्द्र जोशी ने निभाई थीं दूसरे नाटक में सुमित्रानंदन पंत अभिमन्यु बने थे तब जीवन जोशी ने कर्ण का पात्र निभाया था ।

राजेन्द राय लिखित नाटक दुर्गादास जो मूल रूप से बांग्ला में था जिसका अनुवाद रूप नारायण पांडेय ने हिंदी में किया था में हिस्सा लेने के लिए बहुत डांट खाई क्योकि संभ्रांत एव कुलीन अल्मोड़ा के लड़को का राजनैतिक दखल कत्तई पसंद नही था।

साहित्यिक मोर्चे पर ये लड़के खूब सक्रिय रहते और उनमें आपस मे होड़ लगी रहती ।

अलग अलग समूह बन गए थे एक दूसरे से अच्छा करने की होड़ लगी रहती थी ।

कुछ लड़कों ने शुद्ध साहित्य समिति बनाई थी और एक पुस्तकालय खोला था ।

दूसरे समूह के नेता जीवन जोशी थे जिन्होंने वसंत और उशीर नामक हस्तलिखित पत्रिकाएं निकाली ।

हाई स्कूल स्तर के लड़कों की सांस्कृतिक साहित्यिक गतिविधियां वर्तमान परिवेश के लिए आश्चर्य एव विचार का विषय है लेकिन उस दौर में लड़कों के मन पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा वर्तमान दौर की तरह नही थी ।

अल्मोड़ा शहर की चेतना एव सक्रियता स्वाभाविक तौर पर किशोर युवाओं को उद्वेलित प्रेरित करती थी बीसवीं सदी के पांच छः दशकों का अल्मोड़ा का इतिहास इसका साक्षी है ।

हाई स्कूल पास करने के बाद जीवन आगे की पढ़ाई के लिए जीवन लखनऊ आ गए लखनऊ केनिग कालेज जो वर्तमान में लखनऊ विश्विद्यालय है से 1923 में उन्होंने भारतीय इतिहास में एम ए की डिग्री हासिल किया साथ ही साथ इस पूरे दौर में साहित्यिक क्रियाकलाप जारी रखा लिखते रहते जो यंत्र तंत्र छपता भी रहा लेकिन पढ़ना एव साहित्यकारों से सम्पर्क करना ज्यादे अच्छा लगता।

बाल सखा सुमित्रानंदन पंत ,इलाचंद्र जोशी,गोबिंदवल्लभ पंत भी कविता कहानी एव नाटक के क्षेत्र में उभरता नाम बन चुके थे।

सबके रास्ते अलग अलग थे फिर भी सबका एक दूसरे से सम्पर्क बना हुआ था यह दायरा लागातार बढ़ता रहा ।

इतिहास में स्नातकोत्तर करने के बाद उनका इरादा प्रागैतिहासिक में शोध करना था उसी दौरान परिवार में कुछ ऐसे हादसे हुये जैसे कि एक के बाद एक दो दो दीदियों कि मृत्यु भांजे की मृत्यु स्वंय का लू के कारण प्रभावित स्नायुतंत्र जिसके कारण उन्हें बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी इन दुखद घटनाओं से परेशान होकर वे पहाड़ लौट गए ।

(ग)-
जीवन के कठिन समय एवं अचल अवधारणा का सत्य –

जीवन चन्द्र जोशी के मामा मथुरा दत्त पांडेय नैनीताल बैंक के प्रमुख कर्ता धर्ता में थे और जिन्होंने अंग्रेजो के मुकाबले भारतीयों को नैनीताल में बसाने में महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया जीवन चन्द्र जोशी ने नौकरी न करने के निर्णय के साथ अपने मामा के साथ नैनीताल बैंक का कार्य देखते एव मामा की मदद करते उसी दौरान बैंक की कुछ शाखाएं खोली गई उसी दौरान मामा मथुरा दत्त पांडेय की मृत्यु हो गयी और नैनीताल बैंक कि योजनाएं ठप्प पड़ गयी।

1937 में विशाल भारत मे छपे एक लेख ने जीवन चंद्र जोशी का जीवन उद्देश्य निर्धारित कर दिया कलकत्ता से प्रसकशीत होने वाले उस समय के इस प्रमुख पत्र में देवेंद्र कुमार जोशी का कुमायूंनी साहित्यकारों का एक लेख छपा था इस लेख में जीवन चन्द्र जोशी का भी जिक्र था इस लेख पर एडवोकेट बदरी शाह,श्रीधर प्रसाद,तारादत्त पांडेय ,से चर्चा के बाद एक विचार का उदय हुआ कि हिंदी के लिए कुछ किया तो ठीक लेकिन बात खास तो तब है जब अपनी बोली कुमायूंनी के लिए कुछ खास किया जाय और कुमायूंनी में एक पत्रिका के प्रकाशन कि अवधारणा ने जन्म लिया और शक्ति एवं कुमायूं कुमुद में इस संदर्भ का इश्तहार छपवा दिया ।

पत्रिका निकलने के काम मे जुट गए पत्रिका का नाम रखा #अचल# सम्पादन की जिम्मेदारी स्वंय जीवन चन्द्र जोशी जी ने संभाली तारादत्त पांडेय को सहकारी संपादक बनाया बहुत सारे मित्रों को पत्र लिखा लिखकर कुमायूंनी भाषा में लेखन के लिए प्रेरित किया गोबिंदवल्लभ पंत को लिखा( यार अपनी नक्काशी दिखाओ अब वक्त आ गया है) गोबिंदवल्लभ पंथ जी बहुत बढ़िया चित्रकार भी थे सो उन्होंने जिद्दी मित्र कि आकांक्षा के लिए अचल के मुख्यपृष्ठ के लिए पर्वत श्रृंखलाए ,ध्रुव तारा आदि बनाये यानी अचल प्रतीक।

कुमायूंनी लिखनेवाले बहुत कम थे कुछ रचनाएं आयी कुछ उन्होंने पीछे पड़ पड़ कर लिखवाई फिर भी जब सामग्री का संकट आया तो जोशी जी ने स्वंय अलग अलग नामों से खुद कई चीजें लिखी इस तरह अचल का प्रवेशांक फरवरी 1938 में प्रकाशित हुआ ।

वास्तव में उंसे प्रवेशांक नही कहा गया वर्ष एव अंक लिखने की परंपरा निभाने की बजाय नया प्रयोग किया गया अचल को पहाड़ मानकर वर्ष के लिए श्रेणी और अंक के लिए श्रृंग लिखा गया यानी वर्ष एक अंक एक बजाय श्रेणी एक श्रीगं एक ।

यह ऐतिहासिक कुमायूंनी भाषा बोली कि पहली पत्रिका थी
इसी अचल पत्रिका को भविष्य में कुमायूंनी बोली के लिखित साहित्य में मिल का पत्थर बनना था आने वाली पीढ़ी में दूधबोली पत्रिका प्रकाशन का उत्साह जगाना था।

श्रेणी एक श्रीग एक कि चढ़ाई तो चढ़ ली लेकिन आगे के श्रीगो का सफर आसान नही था ।

कदम कदम पर परेशानियों के पहाड़ थे संसाधन की कमी ज्यादा बड़ी बाधा नही बनी पहले दो श्रीग प्रकाशित होने के बाद अल्मोड़ा के इंदिरा प्रेस से जहाँ से अचल छप रहा था झगड़ा हो गया इसका भी रास्ता निकल गया अगले अंकों को छापने की व्यवस्था किंग्स प्रेस नैनीताल से हो गयी ।

मुख्य समस्याएं दो प्रमुख थी एक नियमित रूप से सामग्री जुटाना दूसरा #अचल# के लिए ऐसे पाठक वर्ग तैयार करना जो पत्रिका के महत्व को समझे एव सम्मान दे कुमायूंनी में अच्छे सामग्री के लिए जोशी जी ने हर सम्भव दरवाजा खटखटाया हर उपलब्ध लेखक को टोका एव संभव शील लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित किया खुद भी अलग अलग नमो से लिखा ।

इस संदर्भ में सुमित्रानंदन पंत का किस्सा रोचक एव उल्लेखनीय है पंत जी तब तक हिंदी कविता आकाश के चमचमाते तारे बन चुके थे जोशी जी ने उनसे अपनी बोली में लिखने के लिए कहा अनेको आग्रह किया किंतु पंत जी ने कुमायूंनी में कुछ भी लिख कर नही दिया तब जोशी जी को गुस्सा आया उन्होंने सुमित्रानंदन जी को फटकार लगाई कैसे पहाड़ी हो तुम ?पहाड़ी में ही कुछ लिख कर दो वरना कह दो तुम पहाड़ी नही हो।

इस डांट का असर पड़ा और पंत जी ने सम्भवत पहली और आखिरी कविता अचल के लिए लिखी ।

#अचल# के कुछ अंक निकलने के बाद कई रचनाकारों में जोश जागा स्थापित कुमायूंनी कवियों को मंच मिला ही कई नए रचनाकार भी प्रेरित हुये लेखक बिरादरी जुटती गयी श्यामा चरण दत्त पंथ ,जयंती पंत ,रामदत्त पंत ,भोला दत्त पंत ,बाची राम पंत ,दुर्गादत्त पांडेय,त्रिभुवन कुमार पांडेय आदि आदि कि बड़ी टीम बन गयी अचल में उस समय पहाड़ के अखबारों की समीक्षाएं भी प्रकाशित होती ।

उस समय के बहुचर्चित हैड़ाखान बाबा और सोमवारी बाबा पर सबसे पहले विस्तार से सामग्री #अचल #में छपी जो बाद में उन पर पुस्तक लिखे जाने में सहायक हुई।

प्रख्यात रूसी चित्रकार निकोलाई रोरिख के हिमालय सम्बंधित लेखों का कुमायूंनी अनुबाद भी प्रकाशित किया गया ।

जहाँ तक अचल को कुमायूंनी समाज मे व्यापक स्वीकृति एव सम्मान मिलने का सवाल है जीवन चन्द्र जोशी जी को इसमें बहुत कटु अनुभव हुये कुमायूंनी रचनाकारों ने तो स्वाभाविक ही #अचल #का स्वागत किया लेकिन तथा कथित कुमायूंनी भद्र लोक उंसे हिकारत से देखा ।

बीमारी एव वृद्धावस्था के वावजूद अपने उद्देश्य #अचल# के लिए समर्पित रहे उन्हें इस बात को लेकर बहुत छोभ था कि अंग्रेजो के पिछलग्गू बने बहुत से कुमायूंनी अपनी बोली को हीन भावना से देखते ।

जीवन बड़बाज्यू गुस्से से बोलने लगते तो आवाज कांपने लगती हम कहते है अरे कैसे एंटी नेशनल काम ?हम बता रहे है हमारे भीतर क्या है तुम अपने भीतर का बाहर लाओ हमारी उल्टी खोपड़ी मानती है कि कुमायूंनी में बहुत कुछ किया जा सकता है यह भारी मन जीवन जोशी जी बड़बाज्यू के उदगार तब आये जब #अचल #कुछ कुमायूंनी परिवारो को भेजा गया और उनके द्वारा ( डू नॉट सेंड सच ट्रेश) कुछ ने इसे एंटी नेशनल काम बता दिया।
#अचल #का प्रकाशन करते रहे दो साल बाद 1940 में जनवरी अंक अंतिम साबित हुआ द्वितीय विश्व युद्ध के कारण कागज मिलना मुश्किल हो गया समाज का सहयोग भी निराशा जनक था।

फरवरी 1938 से जनवरी 1940 तक 24 श्रृंग अंक प्रकाशित हुए इनमें दो अंक संयुक्तांक निकलने पड़े ।

राम नगर नैनीताल से कुमायूंनी बोली में दूधबोली प्रकाशित करने वाले कुमायूंनी साहित्य सेवी मथुरदुत्त मठ पाल जिन्हें कुमायूंनी में उल्लेखनीय कार्य के लिए चारुचंद्र पांडेय जी के साथ सयुक्त रूप से साहित्य अकादमी सामान दिया गया बिभन्न संपर्कों से अचल के सभी अंकों को जुटाने का प्रयास किया अधिक अंक मिल भी गए जिसे दूधबोली के 2007 के वार्षिकांक में उन्होंने अचल श्रेणी -2 के अंक -2 ,3,6,7 कि कुछ सामग्रियां प्रकाशित की।

(घ)
कुमाऊनी प्रेम –

जीवन बड़बाज्यू का बचपन एव सौर्य मैदानी शहरों एव कस्बो में ही बीता था बाद में भी बहुत वर्षो तक वह कुमायूं से दूर रहे फिर भी उन्हें अपनी भाषा संस्कृति से अद्भुत लगाव था ।

निश्चय ही पिता लीलाधर जोशी जी के कुमायूंनी प्रेम का योगदान था कुमायूंनी के लिए वे किसी से भी लड़ पड़ते 4 सितंबर 1935 को पण्डित जवाहर लाल नेहरू अल्मोड़ा जेल से रिहा हुये कांग्रेस नेताओं ने नेहरू जी के सम्मान में एक सभा का आयोजन किया बद्री दत्त पांडेय ने जैसे ही हिंदी में भाषण शुरू किया जीवन जोशी ने विरोध किया और बोले नेहरू जी अल्मोडा में है तो कम से कम कुमायूंनी में ही उनके लिए स्वागत भाषण होने चाहिए और बद्रीदत्त पांडेय जी ने कुमायूंनी में बोला ।

जीवन चन्द्र जोशी का विवाह 1924 हुई थी पत्नी बुलंदशहर जनपद के अनूपशहर नगर में पली बढ़ी थी कुमायूंनी बोलना नही जानती थी पत्नी को कुमायूंनी सीखना जीवन जोशी जी ने अपना पहला दायित्व माना लिया बहुत जल्दी वह सिख भी गयी ऐसा ही संयोग उनके बेटे के विवाह के समय हुआ बहु को कुमायूंनी नही आती थी जोशी जी ने घर मे सबको निर्देश दिये कि बहु से सब लोग कुमायूंनी में ही बात करेंगे

1977 में नैनीताल समाचार का प्रकाशन शुरू हुआ और जीवन जोशी बड़बाज्यू जी को इसकी जानकारी हुई तब उन्होंने समाचार पत्र में कम से कम आधा पन्ना कुमायूंनी के लिए आरक्षित करने हेतु कहा ।

29 अप्रैल 1980 को उनका निधन पुत्री हीरा तिवारी के घर मे हुआ ।

हिंदी साहित्य में उनकी बहुत उच्च कोटि की पकड़ थी अच्छे संपर्क भी थे प्रेम चंद,निराला ,अनूप शर्मा जिनका बेटा उनका अंत तक चिकित्सा करता रहा बासुदेव शरण अग्रवाल, दुलारे लाल भार्गव,कृष्ण बिहारी मिश्र ,बनारसीदास चतुर्वेदी, आदि से उनका साहित्यिक विमर्श होता रहता था लखनऊ से प्रकाशित भार्गव जी कि चर्चित पत्रिका सुधा में उन्होंने बहुत कुछ लिखा ।

अल्मोड़ा के प्रसिद्ध चित्रकार ब्रुस्टर ,बैज्ञानिक बोशी सेन से लेकर माइकल एंटोनी ,एव प्रख्यात नित्यकार उदय शंकर से उनके घनिष्ठ सम्बंध थे इन सबके बावजूद उनका पहला प्रेम कुमायूंनी था कुमायूंनी में कुछ करते रहने एव होता रहने की उनमें अदम्य ललक थी ।

कुमायूंनी गढ़वाली नेपाली शब्दकोश बनाने का विचार था 1960 के बाद अकेले पड़ गए और बीमारी ने उन्हें लाचार कर दिया 1938 से 1940 में कुमायूंनी पत्रिका का उनका ऐतिहासिक प्रायास संघर्ष समाप्त नही हुआ 1960 के दशक में जब वे अपने को असहाय एव अकेला महसूस करने लगे थे वंशीधर पाठक एक और धुनि व्यक्ति कुमायूंनी संस्कृति साहित्य के निष्काम सेवा भाव पर चल पड़ा।।

निष्कर्ष –

जीवन जोशी जी बड़ बाज्यू जी जीवन भर साहित्य के लिए समर्पित रहे आखिरी सांस तक वह साहित्य के लिए जीते रहे उन्होंने कुमाऊनी साहित्य संस्कृति के उद्धभ उत्थान के लिए #अचल# के शुभारम्भ से अटल नीव रखी उनके व्यक्तित्व में भारतीयता कि विरासत को एकात्म करने की गजब की ललक थी इसी का परिणाम था कुमाऊनी के प्रति उनका समर्पण जीवन जोशी जी जैसे साहित्य को समर्पित व्यक्तित्व विरले ही मिलते जन्म लेते है जो काल समय को अपने कर्म एवं जीवन से प्रेरित कर जाते है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।
लेखक जीवन परिचय

नाम:-नन्दलाल मणि त्रिपाठी

साहित्यिक नाम:-पीताम्बर

जन्मतिथि:-10/01/1962

जन्मस्थान:- रतनपुरा देवरिया उत्तर प्रदेश

माता का नाम:-स्वर्गीय सरस्वती त्रिपाठी यशोदा
पिता का नाम:-स्वर्गीय वसुदेव मणि त्रिपाठी

शिक्षा:-स्नातकोत्तर

वर्तमान में कार्य:-सेवा निबृत्त प्राचार्य

वर्तमान पता-C-159 दिव्य नगर कॉलोनी पोस्ट-खोराबार जनपद-गोरखपुर पिन-273010

मोबाइल न.-9889621993

मेल id:-KAVYKUSUMSAHITYA@gmail.com

रुचि- लिखना ,पढ़ना ,ज्योतिष ,धर्म शास्त्र

उपलब्धियां:- नाम-100 पुस्तको का लेखन पूर्ण प्रकाशित एहसास रिश्तो का ,नायक ,कहानी संग्रह ,शुभा का सच,मगरू का चुनाव,अधूरा इंसान प्रकाशन स्तर पर

महत्वपूर्ण कार्य –

समाजिक गतिविधि–

1-युवा संवर्धन संरक्षण

2-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

3-महिला सशक्तिककर्ण

4–विकलांग अक्षम लोंगो के लिये प्रभावी परिणाम परक सहयोग

(अ)

शोधपत्र–
दस विभिन्न विषयों पर
(ब)
अध्ययन एव अतिरिक्त ज्ञान–
आधुनिक ज्योतिष विज्ञानं

(स)
विशेषता —वक्ता एवम् प्रेरक

(द)
साझा संकलन –पचहत्तर

(य)सम्मान —

पांच अंतरराष्ट्रीय सम्मान
दो सौ राष्ट्रीय सम्मान बिभिन्न स्तरों पर सांमजिक क्षेत्र में

(र)-
बीस हज़ार से अधिक हताश निराश नवयुवकों को को आत्म निर्भर बनाने का कार्य एव ऐतिहासिक उपलब्धि।

(ल)-
भारतीय बैंकिग उद्योग में अनुकम्पा आधारित नियुक्ति अधिनियम बहाली का संकल्प पूर्ण बहाल अविस्मरणीय उपलब्धि।।
प्राइमरी शिक्षा – रतनपुरा जनपद देवरिया से।
उच्च शिक्षा-गोरखपुर विश्वविद्यालय
माता- स्वर्गीय सरस्वती देवी
पिता-स्वर्गीय बसुदेव मणि त्रिपाठी
विवाह -8 जुन 1986
पत्नी- श्रीमती रेणु त्रिपाठी
पुत्र – जेष्ठ शांडिल्य कनिष्क मणि
कनिष्ठ – प्रशांत मणि शांडिल्य
भाई -बड़े गोपाल मणि त्रिपाठी
छोटा भाई -स्वर्गीय महिपाल मणि त्रिपाठी
आनराष्ट्रीय सम्मय- 1-आदित्य फाउंडेशन श्रीमती शांति देवी पदमा वी पी पद्मा समान
2- एन आर बी फाउंडेशन द्वारा तीन 1-राष्ट्रीय गौरव एवार्ड 2-इंडियन बेस्टीज एवार्ड 3-सर्वश्रेष्ठ ज्योतिष विद 3-साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन 4-नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन काठमांडू रौतहट
साझा संकलन—धरोहर ,पिता, गुलमोहर ,अलकनंदा ,एहसास प्यार का, शब्दांजलि ,काव्य सरिता ,सपनो से हकीकत ,जमी आसमान ,काव्य चेतना, शहीद, शांति पथ, काव्य स्पर्श।

प्राप्त सम्मान–अंतररास्ट्रीय 1-नेपाल भारत वीरांगना फाउंडेशन राजेन्द्र नारायण सम्मान 2–एन आर बी फाउंडेशन भव्या इंटरनेशनल इंडियन वेस्टीज अवार्ड-2019 रास्ट्रीय—1-साहित्य सृजन मंच स्वर्गीय विपिन बिहारी मेहरोत्रा सम्मान 2-काव्य सागर यू ट्यूब कहानी प्रतियोगिता सम्मान 3-साहित्य कलश साहित्य रत्न पुरस्कार 4–कशी काव्य संगम उत्कृष्ट रचना धर्मिता सम्मान 5-बृजलोक साहित्य कला संस्कृत अकादमी श्रेठ साहित्य साधक सम्मान 6–साहित्य दर्पण भरतपुर श्रेठ लेखन सम्मान 7-उत्कृष्ट साहित्य सृजन गुलमोहर सम्मान 8-विश्व शांति मानव सेवा समिति विश्व शांति मानव सेवा रत्न सम्मान 9–काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान-2018 10-काव्य रंगोली साहित्य सम्मान 11–काव्य स्पर्श काव्य श्री साहित्य सम्मान 12–रास्ट्रीय कवि चौपाल एवम् ई पत्रिका हिंदी ब्लॉक स्टार हिंदी सम्मान-2019 13-राष्ट्रिय कबि चौपाल रामेश्वर दयाल दुबे सम्मान 14-युवा जाग्रति मंच कमलेश्वर साहित्य सम्मान 15-अखिल भारतीय साहित्य परिषद साहित्य भूषण सम्मान 16–अखिल भारतीय साहित्य परिषद साहित्य सम्राट सम्मान 17–अलकनंदा साहित्य सम्मान 18-के बी हिंदी साहित्य समिति नन्ही देवी हिंदी भूषण सम्मान 19–रॉक पिजन सम्मान 20–काव्य रंगोली महिमा मंडन पुरकार 21-काव्य रंगोली व्हॉट्स एप्प पुरस्कार -2018 22-काव्य कुल संसथान अटल शब्द शिल्पी सामान 23-धरोहर साहित्य अक्षत सम्मान 24-काव्य कलश राजेन्द्र व्यथित सम्मान 24-काव्य चेतना सम्मान आदि।

अन्य–साहित्य एक्सप्रेस ग्वालियर द्वारा नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर विशेषांक मार्च -2019
आदरणीय सर
आपका लेख शोध आलेख फार्मेट में नहीं हैं कृपया इसे शोध आलेख फार्मेट में लिखकर पुनः प्रेषित कीजिये
सादर 🙏
Show quoted text

Language: Hindi
Tag: लेख
420 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all

You may also like these posts

सोचा था अपनी कलम से तुम्हारी खूबसूरती पर लिखूंगा..... 2 ..
सोचा था अपनी कलम से तुम्हारी खूबसूरती पर लिखूंगा..... 2 ..
Shivam Rajput
ज़िंदगी गुलजार करने के लिए...
ज़िंदगी गुलजार करने के लिए...
आकाश महेशपुरी
यादों का सफर
यादों का सफर
विक्रम सिंह
बदलाव
बदलाव
Dr. Rajeev Jain
पूरे सपने न हुए दिल भी गया हाथों से
पूरे सपने न हुए दिल भी गया हाथों से
कृष्णकांत गुर्जर
मंजिलों की तलाश में, रास्ते तक खो जाते हैं,
मंजिलों की तलाश में, रास्ते तक खो जाते हैं,
Manisha Manjari
" शिक्षा "
Dr. Kishan tandon kranti
गीतिका
गीतिका
surenderpal vaidya
किसी की बेटी के साथ मत खेलना, बहन तेरी भी जवान है_🥰
किसी की बेटी के साथ मत खेलना, बहन तेरी भी जवान है_🥰
Aslam sir Champaran Wale
नज़्म _ तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
नज़्म _ तन्हा कश्ती , तन्हा ये समन्दर है ,
Neelofar Khan
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
लोग हक़ीक़त पसंद नहीं करते ।
लोग हक़ीक़त पसंद नहीं करते ।
Dr fauzia Naseem shad
हटता नहीं है।
हटता नहीं है।
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
समय का सिक्का - हेड और टेल की कहानी है
Atul "Krishn"
यक्षिणी- 27
यक्षिणी- 27
Dr MusafiR BaithA
बना रही थी संवेदनशील मुझे
बना रही थी संवेदनशील मुझे
Buddha Prakash
Be happy with the little that you have, there are people wit
Be happy with the little that you have, there are people wit
पूर्वार्थ
शान्ति दूत
शान्ति दूत
Arun Prasad
*. ईश्वर वही है *
*. ईश्वर वही है *
भूरचन्द जयपाल
प्रथम माता शैलपुत्री
प्रथम माता शैलपुत्री
Dr Archana Gupta
खाली पेड़ रह गए
खाली पेड़ रह गए
Jyoti Roshni
#सीधी_सी_बात।
#सीधी_सी_बात।
*प्रणय प्रभात*
मासूमियत।
मासूमियत।
Amber Srivastava
चाहे हो शह मात परिंदे..!
चाहे हो शह मात परिंदे..!
पंकज परिंदा
बिहारी बाबू
बिहारी बाबू
श्रीहर्ष आचार्य
पहली बारिश
पहली बारिश
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
इंसाफ : एक धोखा
इंसाफ : एक धोखा
ओनिका सेतिया 'अनु '
*जिंदगी से हर किसी को, ही असीमित प्यार है (हिंदी गजल)*
*जिंदगी से हर किसी को, ही असीमित प्यार है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
रिश्तों की डोर
रिश्तों की डोर
मनोज कर्ण
भेद
भेद
Dr.Pratibha Prakash
Loading...