बिड़द थांरो बीसहथी, खरो सुणीजै ख्यात।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
वो परिंदा, है कर रहा देखो
उदधि सुधा
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
पहले मैं इतना कमजोर था, कि ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता था।
कुछ पाने के लिए कुछ ना कुछ खोना पड़ता है,
इंसान तो मैं भी हूं लेकिन मेरे व्यवहार और सस्कार
हिन्दी के साधक के लिए किया अदभुत पटल प्रदान
लाज बचा ले मेरे वीर - डी के निवातिया
मेरे स्वप्न में आकर खिलखिलाया न करो
कैसे कह दूँ....? नींद चैन की सोने दो...!
कान्हा को समर्पित गीतिका "मोर पखा सर पर सजे"
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
*जीवन में जो पाया जिसने, उस से संतुष्टि न पाता है (राधेश्याम
"ज़िंदगी में सफल वही होते हैं जो मुश्किलों से घबराते नहीं, ब
क्यों याद तुमको हम कल करेंगे
प्यार में बदला नहीं लिया जाता