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13 Sep 2023 · 1 min read

हिन्दी‌ की वेदना

🦚
(मनहरण घनाक्षरी-हिंदी की वेदना)
०००
समझ न पाऊँ किस-किस को मैं समझाऊँ,
कैसे मैं बताऊँ हुए बैरी मेरे लाल हैं ।
पढ़ते समझते न लिखते हैं मुझको वे ,
कर्म मेरे पूतों के ही मेरे लिये काल हैं ।।
रेशम की‌ डोरियों से बुनके बनाया है जो ,
झिंगोला नहीं है मेरे लिये वह काल है ।
कैसे कहूँ मेरे नेत्र क्यों हुए हैं‌ लाल-लाल,
ज्योति मेरे लालों ने झुकाया मेरा भाल है ।।
०००
अब तो करो रे चेत बीते हैं‌ बहुत साल,
कद्र मेरी फिर भी न तुमने है जानी रे ।
अपनी ही भाषा का जो जानते महत्व नहीं ,
कहलाते वे गुलाम नहीं अभिमानी रे ।।
स्वयम् की भाषा का जो रखते नहीं हैं मान ।
उन्हें नहीं मिलता है डूबने को पानी रे ।
हिन्दी मेरा नाम करूँ हिन्द के हृदय निवास,
”ज्योति’ कुछ और नहीं मैं हूँ पटरानी रे ।।
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
***
🌸🌸🌸

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