मैं कोई ग़जल लिखूं तो तुम गुनगुनाओगे क्या
#एक युद्ध : भाषाप्रदूषण के विरुद्ध
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
बुंदेली दोहा - सुड़ी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
कितना चाहते हैं तुमको ये कभी कह नहीं पाते, बस इतना जानते हैं
नए मौसम की चका चोंध में देश हमारा किधर गया
नफरत क्या करूँ तुझसे, तू तो खुद नीलाम है।
गुजर रही थी उसके होठों से मुस्कुराहटें,
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)