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31 Aug 2023 · 1 min read

*फूलों मे रह;कर क्या करना*

फूलों मे रह;कर क्या करना
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काँटों से टक्कर लेनी है,
फूलों में रह कर क्या करना।

अपनों से धोखे खाये हैँ,
गैरों से फिर है क्या डरना।

आपस में लड़ते रहते हम,
रण में जाकर है क्या लड़ना।

आँखों से आँसू हैँ बहते,
सागर में गिरकर क्या बहना।

तन्हाँ – तन्हाँ रोते हँसते,
मेलों में जा कर क्या हँसना।

ये दिल तो खाली खोखें है,
भावों का इनमे क्या भरना।

मनसीरत मुख पढ़ते आये,
काले मन का है क्या पढना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

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