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25 Aug 2023 · 1 min read

``बचपन```*

“बचपन“`*

ना जाने हम कब बडे होगये,
माँ पकड़ के उगली चलना सिखाती थी।
आज खुद ही चलने के काबिल हो गये,
कल हम बच्चे थे, आज ना जाने इतने बड़े हो गये..
परिवार से दूर हो गए दोस्तो से पास हो गये,
वो बचपन मेरा था बहुत ही खुबसुरत |
पल मे हँस लिया करते थे, पल मे रो दिया करते थे।
ना ही कोई था इतना बोझ रिति रिवाजो का,
ना थी किसी भी जिम्मेदारी की फिक्र हमें
पेपर के वक्त हो जाती थी थोड़ी टेंशन सी
लेकिन फिर वही पेपर के बाद वो ही मस्ती
हंसते खेलते मुस्करा लिया करते थे ||
आज भी वो बचपन बहुत याद आता है
याद आते है वो बचपन के दोस्त और वो पल
कहते है बीते हुए पल कभी लौटकर नहीं आते
मुझे आज भी बहुत याद आते है वो बचपन के दिन
काश कोई मुझे लौटा दे वो मेरा खेलता हुआ बचपन

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