रंग प्रेम के सबमें बांटो, यारो अबकी होली में।
ज़िन्दगी अब तो कुछ करम कर दे,
अब छोड़ जगत क्षआडंबर को।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
तू लाख छुपा ले पर्दे मे दिल अपना हम भी कयामत कि नजर रखते है
मुख़ातिब यूँ वो रहती है मुसलसल
दिमाग शहर मे नौकरी तो करता है मगर
*कर्मों का लेखा रखते हैं, चित्रगुप्त महाराज (गीत)*
सिर्फ विकट परिस्थितियों का सामना
जब बगावत से हासिल नहीं कुछ हुआ !
(दोहा सप्तक )...... मैं क्या जानूं
कवि/लेखक- दुष्यन्त कुमार (सम्पूर्ण साहित्यिक परिचय)