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15 Aug 2023 · 4 min read

*अपना अंतस*

अपना अंतस

जो तन मन का निग्रह करता,वह अंतस में खो जाता है,वह अंतस का हो जाता है।
योगी बनकर ही सम्भव यह,योगी सब कुछ पा जाता है,पृष्ठ भूमि में बो जाता है।
दुनिया में रहने का मतलब,अपने में खो जाना सीखो,दुखियों में बस जाना सीखो।
बाहर का आडंबर त्यागो,बहिर्मुखी मत बनना सीखो,उत्तम मानव बनना सीखो।
अंतस में ही सिन्धु लहरता,रत्नों का संसार विचरता,खोजी बनकर रहना सीखो।
उत्तम संग्रह करना सीखो,पावन मन का बनना सीखो,सत्य पंथ को गहना सीखो।
भीतर का संसार अनोखा,दिव्य दृष्टिमय बनना सीखो,सागर मंथन करना सीखो।
शिक्षा ग्रहण करो संयम की,ले लो दीक्षा आत्मतोष की,आत्म गेह में जाना सीखो।
संस्था बनकर चलना सीखो,अपनी रक्षा करना सीखो,मूल्यों को अपनाना सीखो।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

मौन (मुक्तक)
इतना क्यों तुम चुप रहते हो?
बात क्यों नहीं तुम करते हो?
अपनी मंशा बतला देना।
मौनव्रती तुम क्यों बनते हो?

संबंधों का ताना बाना ।
लगे नहीं क्या अब दीवाना?
होता जब संवाद नहीं है।
लगता सारा जग वीराना।

भूल गये क्या कल की बातें?
क्यों न स्वप्न में भी अब आते?
भूल हुई हो तो बतला दो।
क्यों मोहन को बहुत सताते?

सम्भव हो तो माफी दे दो।
अपना पावन वापी दे दो।
मधुर मनोहर प्रिय मधुमय हो।
अगर हो सके मय प्याली दो।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

मादक हाला (मुक्तक)

जीवन प्यारा मधुर वेद है।
यहाँ न दिखता भाव भेद है।
अति प्रिय मोहक मद्य रागिनी।
दूर दूर तक नहीं खेद है।

मन में बहती मोह कामना।
बाहों में उत्साह भावना।
कसो अंक में आजीवन ले।
यही मनोरम हृदय याचना।

कभी लगा था साथ मिलेगा।
दिव्य सुनहरा भाव खिलेगा।
पर शंका भी रहती दिल में।
पता नहीं क्या सांच दिखेगा?

मादक हाला बन तुम आये।
रस बरसाते अति नहलाये।
भींग रहा तन मन अंतस उर।
एकीकृत हो पर्व मनाये।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र

चलो चलें (मुक्तक)

चलो चलें आकाश देखने।
आभायुक्त प्रकाश देखने।
अंतरिक्ष में चन्द्रयान से।
पीत रंग का ताश खेलने।

चलो गगन में सैर करेंगे।
नहीं कभी भी गैर कहेंगे।
हृदय यान में उड़ते चल कर।
कर में कर ले वायु बनेंगे।

प्रीति काव्य का लेखन होगा।
मधुरिम भव्य विवेचन होगा।
प्रेमामृतम रस बहे निरंतर।
मधु संसद अधिवेशन होगा।

ब्रह्मलोक का दर्शन होगा।
प्रिय आनंदक स्पर्शन होगा।
हृदय मिलन की बारिश होगी।
मधुर मधुर मन हर्षण होगा।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

तुलसी के राम ( दुर्मिल सवैया )

तुलसी कहते प्रिय राम सहोदर ब्रह्म समान सखा सब के।
हर रूप मनोरम भाव सुधा अति शांत दयालु सदा जग के।
ममता सबसे रखते चलते उपकार किया करते रहते।
अवतार सदा पुरुषोत्तम राम अधर्म विनाश किया करते।

वनवास सहर्ष उन्हें प्रिय है असुरारि बने गृह त्याग किये।
ज़नजाति सभी उनके अपने रखते अति मोहक भाव हिये।
सब साधु सुसंत सदा उर में उनके प्रति उत्तम भाव रखे।
धरमार्थ अड़े रहते प्रभु जी बनते सब के प्रिय प्राण सखे।

खुद वेद पुराण बने दिखते प्रिय राम चरित्र उजागर है।
हर कर्म पवित्र सदा शुभदायक राम स्वभाव सुधाकर है।
भज लो हरिनाम रहो सुख धाम करो हर काम दिखे शुचिता।
जब राम कृपा जगती मन में बहती दरिया दिल में मधुता।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

विवश पिता (मुक्तक)

विवश पिता लाचार पड़ा है।
नहीं भूमि पर आज खड़ा है।
खुद को बहुत उपेक्षित पाता।
विघटन चारोंओर अड़ा है।

बेटी बेटे सब स्वतन्त्र हैं।
कहते इसको लोकतंत्र हैं।
मर्यादा अब तार तार है।
नव नूतन यह ग़ज़ब तंत्र है।

परम्परा का लोप दिख रहा।
नव्य कलुष इतिहास लिख रहा।
होते अपने ही बेगाने।
बिना भाव के पिता बिक रहा।

नहीं बड़े की चिंता करते।
अपने मन से सदा विचरते।
मूल्यहीन अब पिता हो गया।
बच्चे शोर मचाते चलते।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

भूल गये क्या?(मुक्तक)

लगता जैसे भूल गये हो।
बहुत दूर क्या चले गये हो?
नहीं निकटता का मतलब है।
चित्त चुरा कर निकल गये हो।

तड़पाना तुझको आता है।
बहकाना अतिशय भाता है।
बातेँ कर के चुप हो जाते।
मन निष्ठुर क्यों हो जाता है?

तोड़ हृदय के तानेबाने।
क्यों लग जाते हो मुस्काने?
क्या सच में यह बात ठीक है?
विम्ब देख क्यों लगते जाने?

दिल का कैसे घाव भरेगा?
टूटे मन पर शान धरेगा?
डूब रही जीवन की नैया।
कौन इसे उस पार करेगा?

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

सच्चा मानस (मुक्तक)

नहीं रूठता सच्चा मन है।
दे देता वह तन उर धन है।
मनमोहक बन परिचय देता।
स्नेह दिखाता सहज सघन है।

शिक्षक बनकर राह दिखाता।
प्रेमिल उर्मिल बात सिखाता।
मधुरिम भाव भरा है दिल में।
प्रेमी बनकर सदा लुभाता।

बाँह पकड़ कर नहीं छोड़ता।
अपने मुँह को नहीं मोड़ता।
साथ निभाता चूक न करता।
खुले हृदय से हाथ जोड़ता।

साथ निभाने में वह माहिर।
मधुर स्वभाव दिव्य जग जाहिर।
नहीं मांगता है वह कुछ भी।
सिर्फ प्रीति का अनुपम कादिर।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

स्वतन्त्रता दिवस (अमृत ध्वनि छन्द )

भारत वर्ष स्वतन्त्रता,की अनुपम अनुभूति।
इसकी रक्षा हो सदा,बनकर परम विभूति।।
बनकर परम विभूति,करो प्रति,पल संरक्षण।
कभी न चूको,सदा डटे रह,देखो हर क्षण।।
बोलो जय जय,भारत की जय,रहना आरत।
आज सुखी है,सदा रहेगा,उन्नत भारत।।

भारत वीर सपूत का,है अति पावन देश।
बलिदानी जत्था यहाँ,राष्ट्रवाद का वेश।।
राष्ट्रवाद का वेश,पहन सब,जश्न मनाते।
होते सैनिक,कभी न विचलित,भक्ति जताते।।
देश प्रेम से,शुद्ध हृदय से,दुश्मन मारत।
आदर्शों की,मोहक धरती,स्वतन्त्र भारत।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

Language: Hindi
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