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8 Aug 2023 · 1 min read

#ग़ज़ल-

#ग़ज़ल-
■ मेरे ज़ख़्म टटोल रहा था सन्नाटा।।
【प्रणय प्रभात】

– राज़ दिलों के खोल रहा था सन्नाटा।
मैने देखा बोल रहा था सन्नाटा।।

– नींद उदासी ख़्वाब तसव्वुर तन्हाई।
सब पलकों पे तोल रहा था सन्नाटा।।

– औरों को चुभता होगा लेकिन मुझमें।
बस मिसरी सी घोल रहा था सन्नाटा।।

– हर जगहा महफ़िल थी पर मेरे दिल में।
आवारा सा डोल रहा था सन्नाटा।।

– शायद इनमें थोड़ी आहें बाक़ी हों।
मेरे ज़ख़्म टटोल रहा था सन्नाटा।।

– कुछ गूंगे अहसास थे कुछ बहरे नाते।
सन्नाटे से बोल रहा था सन्नाटा।।

– आंसू आहें बेच के हमने मोल लिया।
सदियों से अनमोल रहा था सन्नाटा।।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

Language: Hindi
1 Like · 217 Views
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