I can’t be doing this again,
अगर मैं / अरुण देव (पूरी कविता...)
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
*दिन-दूनी निशि चौगुनी, रिश्वत भरी बयार* *(कुंडलिया)*
लो आ गए हम तुम्हारा दिल चुराने को,
सबसे पहले वो मेरे नाम से जलता क्यों है।
बुंदेली दोहे- गुचू-सी (छोटी सी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
इंसान को इंसान ही रहने दो