यह कलयुग है

(शेर)- मानवता के खून का, दौर चल रहा है।
नीलाम करके इंसानियत, इंसान हंस रहा है।।
बन गया है इंसान अब एक कलपुर्जे की तरह।
मर चुकी है आत्मा,और कलयुग चल रहा है।।
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छोटी सी बात पे, बतंगड़ बन जाता है।
और झट से इंसान, शैतान बन जाता है।।
असहनशीलता – हिंसा का, यह कैसा युग है।
यह कलयुग है——————–(4)
छोटी सी बात पे———————।।
औलाद, माँ-बाप को बेघर कर रही है।
माँ-बाप के साथ में, मारपीट कर रही है।।
संस्कारहीनता- पापों, का, यह कैसा युग है।
यह कलयुग है——————–(4)
छोटी सी बात पे———————।।
मौत के मातम पे, मदिरा चल रही है।
अपनों के हाथों इज्जत, नारी की लुट रही है।।
रिश्तों की नीलामी – पशुता का, यह कैसा युग है।
यह कलयुग है———————(4)
छोटी सी बात पे ——————–।।
दया,शर्म, समझदारी, अब बहुत कम है।
मुल्क से वफादारी, इंसानियत कम है।।
व्यभिचार और गद्दारी का, यह कैसा युग है।
यह कलयुग है———————(4)
छोटी सी बात पे——————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)