ताल -तलैया रिक्त हैं, जलद हीन आसमान
जिस तन पे कभी तू मरता है...
ख़्वाब तेरे, तेरा ख़्याल लिए ।
यह कहते हुए मुझको गर्व होता है
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
*प्रेम की रेल कभी भी रुकती नहीं*
सशक्त रचनाएँ न किसी "लाइक" से धन्य होती हैं, न "कॉमेंट" से क
शेर हर फील्ड में शेर होता है
करम के नांगर ला भूत जोतय ।
मैं धर्मपुत्र और मेरी गौ माँ
चांद चेहरा मुझे क़ुबूल नहीं - संदीप ठाकुर