जो भी मिल जाए मत खाओ, जो स्वच्छ मिले वह ही खाओ (राधेश्यामी छ
तुझे रूकना नहीं आता मुझे छोड़ ना।
नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन, तब सुख के म
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जो आता है मन में उसे लफ्जों से सजाती हूं,
चितौड़ में दरबार डोकरी
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मुझे बेज़ार करने के उसे भी ख़्वाब रहते हैं
ग़ज़ल-ईश्क इबादत का बयां होता है
तेरी याद दिल से जाती नहीं
महब्बत मैगनेट है और पइसा लोहा
निज भाषा पर है नहीं, जिसे तनिक अभिमान।
कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,