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26 Jul 2023 · 2 min read

जैसे को तैसा

जैसे को तैसा

रामपुर में एक बहुत ही मेहनती तथा बुद्धिमान कुम्हार रहता था। नाम था उसका- दीनबंधु।
एक बार दीनबंधु अपने बेटे की शादी में गाँव के महाजन से उसकी घोड़ी किराए पर लाया। दुर्भाग्य से वह घोड़ी महाजन को लौटाने से पहले ही मर गई।
दीनबंधु चिंतित हो गया। महाजन बहुत ढीठ था। उसकी नजर दीनबंधु के उपजाऊ खेतों पर थी। कई बार उसने दीनबंधु से मुँहमाँगी कीमत पर खरीदने की बात की थी, पर दीनबंधु उसे बेचना नहीं चाहता था। घोड़ी के मरते ही महाजन को लगा कि अब जल्दी ही उसकी इच्छा पूरी होकर रहेगी।
महाजन दीनबंधु से बोला- ‘‘मुझे वही घोड़ी चाहिए और वह भी जिंदा।’’
दीनबंधु ने कहा- ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है महाजन जी ! मरी हुई घोड़ी जिंदा कैसे हो सकती है ? उसके बदले आप घोड़ी की कीमत ले लीजिए।’’
लेकिन लालची महाजन कहाँ मानने वाला था, उसने कहा कि उसे वही घोड़ी चाहिए। सीधी उंगली से घी निकलते न देख कुम्हार ने सोचा टेढी उंगली से की काम चलाना पड़ेगा। कुछ सोचकर उसने कहा- ‘‘ठीक है महाजन जी, आप कल सुबह मेरे घर आइए। आपको अपनी घोड़ी मिल जाएगी।’’
महाजन ने कहा- “ठीक है, लेकिन यदि वही घोड़ी नहीं मिली तो मैं जो चाहूँगा, तुम्हें वही करना पड़ेगा।’’
कुम्हार बोला-‘‘मुझे आपकी षर्त स्वीकार है।’’
महाजन का मन खुषी से झूम उठा। वह बड़ी बेसब्री से अगली सुबह का इंतजार करने लगा। रात को वह ठीक से सो भी न सका।
तड़के सुबह वह कुम्हार के घर पहुँचकर ‘दीनबंधु’, ‘दीनबंधु’ चिल्लाने लगा, पर दरवाजा किसी ने नहीं खोला। वह गुस्से से जोर-जोर से चिल्लाने लगा। फिर भी दरवाजा नहीं खुला तो उसने जोर से धक्का दे दिया । दरवाजा तो खुल गया पर उससे लगे अनेक मिट्टी के बर्तन टूटकर चकनाचूर हो गए।
दीनबंधु तो जैसे इसी के इंतजार में था। वह जोर-जोर से रोने लगा। बोला ‘हाय मेेरे बर्तन’, ‘तोड़ डाला रे’, ‘तोड़ डाला रे’।
महाजन बोला-‘‘रोओ मत! ठसकी कीमत मुझसे ले लेना।’’
कुम्हार बोलाा-‘‘मुझे तो यही बर्तन चाहिए वह भी बिना टूटे हुए, जैसे पहले थे।’’
महाजन का मुँह लटक गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। उसने दीनबंधु से माफी माँगी।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
1 Like · 163 Views
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