किसी को किसी से फ़र्क नहीं पड़ता है
*सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक के प्रारंभिक पंद्रह वर्ष*
अनगणित भाव है तुम में , तुम ही हर भाव में बसी हो ,
रिश्ते के सफर जिस व्यवहार, नियत और सीरत रखोगे मुझसे
हर प्रेम कहानी का यही अंत होता है,
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
जो हैं रूठे मैं उनको मनाती चली
मेरी नजरो में बसी हो तुम काजल की तरह।
ख़ुद पे गुजरी तो मेरे नसीहतगार,
जरा सी बात को लेकर कभी नाराज मत होना